Tuesday, 27 January 2015

money and banking info


मुद्रा एवं बैंकिंग से जुड़े जानकारी

: BANKS AND THEIR HEADQUARTERS   
==============================================
[1] Allahabad Bank - Kolkata
[2] Andhra Bank - Hyderabad
[3] Bank of Baroda - Vadodara (Baroda)
[4] Bank of India - Mumbai
[5] Bank of Maharashtra - Pune
[6] Bharatiya Mahila Bank - New Delhi
[7] Canara Bank - Bengaluru
[8] Central Bank of India - Mumbai
[9] Corporation Bank - Mangalore
[10] Dena Bank - Mumbai
[11] Indian Bank - Chennai
[12] Indian Overseas Bank - Chennai
[13] Oriental Bank of Commerce - Gurgaon
[14] Punjab and Sindh Bank - New Delhi
[15] Punjab National Bank - New Delhi
[16] State Bank of India - Mumbai
[17] Syndicate Bank - Manipal
[18] Union Bank of India - Mumbai
[19] United Bank of India - Kolkata
[20] UCO Bank - Kolkata

[21] Vijaya Bank - Bangalore

: बैंक नोट: वो सबकुछ जो आप हमेशा जानना चाहते थे
=============================
►कौन तय करता है कि कितने रुपये छपेंगे?
-कब और कितने करेंसी नोट छपने हैं,
इसका फैसला रिजर्व बैंक करता है।
-इसे करेंसी मैनेजमेंट कहते हैं।
-बैंक किस मूल्य के कितने नोट छापेगा, यह विकास दर,
मुद्रास्फीति दर, कटे-फटे
नोटों की संख्या और रिजर्व स्टॉक
की जरूरतों पर निर्भर करता है।
-करेंसी नोट की मांग का पता लगाने के लिए
सांख्यिकीयविधियों का सहारा लिया जाता है।
►इन्हें कहां पर छापा जाता है स्याही, कागज
कहां का?
-देश में चार बैंक नोट प्रेस, चार टकसाल और एक पेपर मिल है।
-नोट प्रेस मध्यप्रदेश के देवास, नासिक,
सालबोनी और मैसूर में हैं।
-1000 के नोट मैसूर में छपते हैं।
-देवास की नोट प्रेस में एक साल में 265 करोड़ नोट
छपते हैं।
-इनमें 20, 50, 100, 500 रुपए मूल्य के नोट शामिल हैं।
-देवास में तैयार स्याही का ही उपयोग
किया जाता है।
-मप्र के ही होशंगाबाद में सिक्यूरिटी पेपर
मिल है।
-नोट छपाई पेपर होशंगाबाद और विदेश से आते हैं।
जबकि टकसाल मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता और नोएडा में हैं।
►हम तक करेंसी कैसे पहुंचती है?
-रिजर्व बैंक के देशभर में 18 इश्यू ऑफिस हैं। ये अहमदाबाद,
बेंगलुरू, बेलापुर, भोपाल, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नई,
गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जम्मू, कानपुर, कोलकाता,
मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली, पटना व थिरुवनंतपुरम में
स्थित हैं।
-इसके अलावा एक सब-ऑफिस लखनऊ में है। प्रिंटिग प्रेस में
छपे नोट सबसे पहले इन ऑफिसों में पहुंचते हैं। यहां से उन्हें
कमर्शियल बैंक की शाखाओं को भेजा जाता है।
►बेकार हो चुके नोटों को कहां जमा करते हैं?
नोट तैयार करते वक्त ही उनकी ‘शेल्फ
लाइफ’ (सही बने रहने की अवधि) तय
की जाती है। यह अवधि समाप्त होने पर
या लगातार प्रचलन के चलते नोटों में खराबी आने पर
रिजर्व बैंक इन्हें वापस ले लेता है। बैंक नोट व सिक्के
सर्कुलेशन से वापस आने के बाद इश्यू ऑफिसों में जमा कर दिए
जाते हैं। रिजर्व बैंक सबसे पहले इनके असली होने
की जांच करता है। उसके बाद इन नोटों को अलग
किया जाता है, जो दोबारा जारी किए जा सकते हैं। बेकार
हो चुके नोटों को नष्ट कर दिया जाता है। इसी तरह
सिक्कों को गलाने के लिए मिंट भेज दिया जाता है।
►बैंक नोट क्यों कहते हैं?
रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाने के कारण इन्हें बैंक
नोट कहा जाता है।
►कैसे छपते हैं?
विदेश या होशंगाबाद से आई पेपर शीट एक खास
मशीन सायमंटन में
डाली जाती है। फिर एक अन्य
मशीन जिसे इंटाब्यू कहते हैं उससे कलर
किया जाता है। यानी कि शीट पर नोट छप
जाते हैं। इसके बाद अच्छे और खराब नोट
की छटनी हो जाती है। खराब
को निकालकर अलग करते हैं। एक शीट में
करीब 32 से 48 नोट होते हैं।
►कैसे नंबर अंकित करते हैं?
शीट पर छप गए नोटों पर नंबर डाले जाते हैं। फिर
शीट से नोटों को काटने के बाद एक-एक नोट
की जांच की जाती है। फिर
इन्हें पैक किया जाता है। पैकिंग के बाद बंडलों को विशेष सुरक्षा में
ट्रेन से भारतीय रिजर्व बैंक तक भेजा जाता है।
►क्या खासियत होती है
इनमें?
* बैंक नोट
की संख्या चमकीली स्याही से
मुद्रित होती है। बैंक नोट में चमकीले रेशे
होते हैं। अल्ट्रावायलेट रोशनी में दोनों देखे जा सकते
हैं।
* कॉटन और कॉटन के रेशे मिश्रित एक वॉटरमार्क पेपर पर नोट
मुद्रित किया जाता है।
* नई श्रंखला वाले 500 और 1000 रुपए मूल्य के नोट
की छपाई के लिए प्रति वर्ग सेमी वजन
को बढ़ाने के साथ-साथ अधिक मोटाई वाले कागज का उपयोग
किया गया है।
● RTGS लेन-देन के लिए निर्धारित न्यूनतम और
अधिकतम
सीमा (रुपयों में) → न्यूनतम सीमा 2 लाख रुपये और
अधिकतम सीमा कोई नहीं है।
● भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्जिम बैंक)
की स्थापना कब की गई → 1 जनवरी,
1982
● आर्थिक नियोजन किस सूची का विषय है? →
समवर्ती सूची का
● प्लास्टिक मनी क्या है? → क्रेडिट कार्ड
● राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान कहां है →
हैदराबाद में
● भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर कौन हैं? → रघुराम
राजन
● भारत का सबसे पहला बैंक कौन-सा था? → बैंक
ऑफ हिंदुस्तान
● योजना में कोर सेक्टर का क्या तात्पर्य है? →
चयनित आधारभूत उद्योग
● बंद अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है? → आयात-
निर्यात
की अनुपस्थिति
● किस राज्य सरकार ने पहली पीढ़ी के उद्यमियों के
लिए एंजेल फंड की शुरुआत की है? →
असम
● अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मुख्यालय कहां है? →
वाशिंगटन
● भारत में विदेशी मुद्रा पर किसका नियंत्रण है →
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
● भारत की राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है →
केंद्रीय
सांख्यिकीय संगठन द्वारा
● विश्व बैंक का मुख्यालय कहाँ स्थित है →
वाशिंगटन डी. सी.
● भारत सरकार ने पहली बार बैंकों का (14 बैंकों का)
राष्ट्रीयकरण कब किया था? →
19 जुलाई, 1969 को
● पूर्ण रूप से प्रथम भारतीय बैंक कौन-सा था? →
पंजाब नेशनल बैंक
● एशियाई विकास बैंक का मुख्यालय कहां स्थित है
→ मनीला
● स्टैगफ्लेशन क्या है? → मंदी के साथ मुद्रास्फीति
● केंद्रीय राजस्व बोर्ड का विभाजन करके केंद्रीय
उत्पाद शुल्क,
सीमा शुल्क बोर्ड एवं केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड
का गठन किस वर्ष किया गया था →
1963 ई. में
● विश्व बैंक की उदार ऋण प्रदान करने
वाली खिड़की किसे
कहा जाता है? → अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
को
● भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा परिकल्पित किये गये
‘ऑन टैप
लाइसेंसिंग’ का क्या उद्देश्य है? → किसी भी समय
पूर्ण
सेवा बैंकों को खोलने के लिए केंद्रीय बैंक में आवेदन
करने
की सुविधा प्रदान करना
● जिस बाजार में स्टॉक
जैसी दीर्घावधि प्रतिभूतियां खरीदी और
बेची जाती हैं, उसे
सामान्यतः कहते हैं → पूंजी बाजार
● भारत में 50 रुपए के करेंसी नोट पर हस्ताक्षर होते हैं
→ गवर्नर, आरबीआई
● मुख्यतः आवास ऋण का संबंध जिस बैंक से है वह है →
HDFC
● बैंकों द्वारा किसानों को फसल ऋण देने के लिए शुरू
की गई
सुविधा → किसान क्रेडिट कार्ड
● बैंकों में ग्राहक सेवा सुधारने के लिए सुझाव देने के
लिए
जो समिति गठित की गई थी →
गोइपोरिया समिति
● कमजोर बैंकों की पुनर्संरचना हेतु सिफारिश देने के
लिए गठित की गई समिति →
वर्मा समिति
● ‘पिगमी डिपॉजिट स्कीम’ किस बैंक की प्रचलित
योजना है? → सिंडिकेट बैंक
● भारत का पहला व्यावसायिक बैंक
जिसका स्वामित्व व प्रबंधन पूर्णतः भारतीयों के
पास
था? → सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
● भारत का सबसे अधिक शाखाओं वाला बैंक →
भारतीय स्टेट बैंक
● पहला भारतीय बैंक, जिसका प्रारंभ
पूर्णतया भारतीय पूंजी से हुआ था → पंजाब नेशनल
बैंक
● भारत में कार्यरत निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक →
आईसीआईसीआई बैंक
● जिस ऋण उत्पाद के लिए बैंकों द्वार टीजर ऋण
दिए जाते हैं, वह है → आवास ऋण
● बैंकिंग शब्दावली आई एम पी एस (IMPS) का पूर्ण
विस्तार है → इंटरबैंक मोबाइल
पेमेंट सर्विस
● भारतीय स्टेट बैंक का पुराना नाम है → इंपीरियल
बैंक ऑफ इंडिया
● भारतीय रुपए को नई पहचान प्राप्त हुई → 15
जुलाई, 2010 में
● भारतीय रिजर्व बैंक जिस बैंक के माध्यम से भारत के
विदेश
व्यापार का वित्त पोषण करने के लिए मदद करता है
→ एक्जिम बैंक
● निवेश के संदर्भ में A, AA+ और AAA से तात्पर्य है →
क्रेडिट रेटिंग
● ‘CORE’ बैंकिंग सर्विसेज में CORE का पूरा नाम है →
Centralized Online Realtime Exchange
● विश्व बैंक की ‘उदार ऋण प्रदान करने
वाली खिड़की’ कहा जाता है
→ अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
● बैंकिंग क्षेत्र जिस क्षेत्र के अंतर्गत आता है, वह है →
सेवा क्षेत्र
● भारत का प्रथम आई.एस.ओ. प्रमाण पत्र वाला बैंक
है →
केनरा बैंक
● प्रथम बैंक जिसने 1946 में भारत से बाहर लंदन में
अपनी शाखा खोली → बैंक ऑफ इंडिया
● वर्तमान समय में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अध्यक्ष

अरूंधती भट्टाचार्या
● अल्पकालिक अवधि के लिए रिजर्व बैंक
द्वारा कॉमर्शियल बैंकों से जिस ब्याज दर पर
नकदी प्राप्त की जाती है उसे कहते हैं → रिवर्स
रेपो रेट
● बैंकों के चेकों के संसाधन के लिए प्रयोग
किया जाता है → MICR
का
● जिस विदेशी मुद्रा में शीघ्र देशान्तरण
की प्रवृत्ति होती है, उसे
कहते हैं → गरम मुद्रा (Hot currency)
● राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
(NABARD)
की स्थापना किस पंचवर्षीय योजना की अवधि में
की गई थी? → छठवीं
● विश्व बैंक का मुख्यालय स्थित है → वाशिंगटन


🍎1. भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक बैंक है►.ans– स्टेट बैंक ऑफ इंडिया


🍎2. ‘इम्पीरियल बैंक’ पहले का नाम है ►ans– स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का ।


🍎3. पूर्ण रूप से पहला भारतीय बैंक है

►ans– पंजाब नेशनल बैंक ।

🍎4. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण हुआ

►ans– 1 जनवरी, 1949 ई. में ।

🍎5. वह दर, जिस पर वाणिज्यिक बैंक RBI से अल्पकालीनऋण प्राप्त करते हैं, कहलाता है
►ans– रेपो दर ।


🍎6. अल्पकालिक साख एवं दीर्घकालिन साख उपलब्ध करानेवाला संगठन है
►ans– क्रमश: मुद्रा बाजार एवं पूंजी बाजार ।


🍎7. भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सबसे अधिक शाखाएंहैं
►ans– उत्तर प्रदेश में ।


🍎8. बैंकों में ग्राहक सेवा सुधारने के लिए सुझाव देनेवाली समिति है►ans– गोइपोरिया समिति ।


🍎9. शेयर घोटाला की जांच के लिए गठित समिति थी►ans– जानकीरमन समिति ।

🍎10. भारत का केंद्रीय बैंक है►ans– रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)


🍎11. भारत में राष्ट्रीयकृत बैंकों की कुल संख्या है►– 19

🍎12. एक्सिस बैंक लि. (UTI) का पंजीकृत कार्यालय है►
ans– अहमदाबाद में ।


🍎13. भारत में औद्योगिक वित्त की शिखर संस्थाहै

►ans– भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI)


🍎14. बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) विधेयक पारितहुआ
►ans– दिसंबर, 1999 ई. में ।


🍎15. भारत में कुल मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज हैं
►ans– 24


🍎16. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI)की स्थापना हुई
►ans– अप्रैल, 1988 ई. में ।

🍎17. ‘BSE-200′ शेयर मूल्य सूचकांक है
►ans– मुंबई (भारत) का ।

🍎18. HDFC बैंक तथा IDBI बैंक का मुख्यालय है
►ans– क्रमश: मुंबई और इंदौर ।

🍎19. ICICI बैंक तथा भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्यालय स्थित है
►ans– क्रमश: बड़ौदा तथा मुंबई में ।

🍎20. ‘भारतीय पर्यटन वित्त निगम’की स्थापना की गई थी
►ans– 1989 ई. में ।

🍎21. सहकारिता को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने वाला भारतका राज्य है►ans– आंध्र प्रदेश

🍎22. भारत की सबसे बड़ी म्यूचल फंड संस्था है
►ans– भारतीय यूनियन ट्रस्ट (UTI)

🍎23. विनिवेश कमीशन (स्थापना-1996 ई.) के प्रथमअध्यक्ष थ
े►ans– जी वी रामकृष्णन ।

🍎24. भारत में मनीऑर्डरप्रणाली की शुरुआत की गई
►ans– 1980 ई. में ।

🍎25. भारतीय रुपयों का अब तक अवमूल्यन हो चुका है►
ans– तीन बार (1949, 1966 एवं 1991 ई. में )

🍎26. एक रुपए का नोट तथा सिक्के का निर्गमन करता है
►ans– वित्त मंत्रालय (भारत सरकार )

🍎27. करेंसी नोटों (5, 10, 20, 50, 100, 500 तथा 1000रु.) का निर्गमन करता है
►ans– भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

🍎28. 20 रु., 100 रु., तथा 500 रु. के नोट छपते हैं
►ans– बैंक नोट प्रेस देवास में ।

🍎29. 10 रु., 50रु., 100 रु., 500 रु., तथा 1000 रु. के नोट छपते हैं
►ans– करेंसी नोट प्रेस नासिक में ।

🍎30. भारत में सिक्का उत्पादन होता है
►ans– टकसाल में ।

🍎31. ‘नास्डैक’ है
►ans– अमेरिकी शेयर बाजार ।

🍎32. भारत का पहला मोबाइल बैंक(लक्ष्मी वाहिनी बैंक) स्थित है-
Ans खरगोन (मध्यप्रदेश) में ।

🍎33. भारत में पहला तैरता हुआ ATM कोच्ची मेंखोला गया है-
Ans स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा ।

🍎34. राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज(NIFTI)की स्थापना की संस्तुति 1991 ई. मेंकी थी
►ans– ‘फेरवानी समिति’ ।

🍎35. शेयर होल्डरों के स्टॉक पर हुई कमाई को कहते हैं
►ans– लाभांश ।

🍎36. ‘बैंको का बैंक’ कहा जाता है
►ans– रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को ।

🍎37. मुद्रा स्फीति में सबसे अधिक लाभ होता है
►ans– लेनदान को ।

🍎38. भारत में शेयर बाजार का मुख्य नियंत्रक है
►– SEBI (सेबी)

🍎39. भारतीय यूनियन ट्रस्ट (UTI) का 30 जुलाई 2007 सेनाम बदलकर रखा गया है
Ans►– एक्सिस बैंक लिमिटेड ।

🍎40. भारत सरकार ने सबसे पहले 14 बड़ेव्यापारिका बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया
►ans– 18 जुलाई 1969 ई. ।

🍎41. सरकार ने पुन: 6 बड़े व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया
►ans– 15 अप्रैल 1980 ई. को ।

🍎42. ‘न्यू बैंक ऑफ इंडिया’ का पंजाब नेशनल बैंक का विलय हुआ
►ans– 4 सितंबर 1993 ई. को ।

🍎43. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मुद्रा विनिमय दर निश्चितकी जाती है
►ans– मुद्रा आपूर्ति और मांग द्वारा ।

🍎44. भारत में सबसे पहले पत्र-मु्द्रा का चलन हुआ था
Ans►– 1806 ई. में ।

🍎45. भारत के सार्वजनिक ऋण प्रचालनों को संचालित करता है►– RBI

🍎46. अर्थशास्त्र में निवेश का मतलब क्या है
►ans– शेयरों की खरीदारी ।

🍎47. ऐसा ऋण जो बट्टे पर दिया जाता है और सममूल्य पर प्रतिदेय हो,कहलाता है
►ans– शून्य कूपन बॉण्ड ।

🍎48. भारत में अपनी शाखा खोलनेवाला पहला रूसी बैंक है
►ans– इन्कम बैंक ऑफ रसिया ।

🍎49. न्यूयार्क में स्थित सटॉक एक्सचेंज का नाम है►ans– वॉल स्ट्रीट ।

🍎50. विश्व बैंक की आसान ऋण प्रदाता संस्था है
►ans– इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन ।

🍎51. 10 रु. के नोट पर हस्ताक्षर होता है
►– RBI के गवर्नर का ।

🍎52. इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (IDBI)शाखा है
►ans– भारतीय स्टेट बैंक का ।

🍎53. सिक्का के अलावे पदकों का भी उत्पादन होता है
►ans– मुंबई तथा कोलकाता के टकसाल में ।

🍎54. वह दर जिस पर केंद्रीय बैंक, अन्य बैंकोंके प्रथमश्रेणी के बिलों की पुनर्कटौती करता हैया ऋण देता है, कहलाता है
►ans– बैंक दर ।

🍎55. मूल्य सूचकांक में परिवर्तन की दर को कहा जाता है
►ans– मुद्रा स्फीति ।

Friday, 23 January 2015

भ्रष्टाचार निवारण विधेयक :पृष्ठभूमि एवं प्रावधान (corruption)

भ्रष्टाचार निवारण विधेयक :पृष्ठभूमि एवं प्रावधान




अस्सी के दशक में उजागर हुए भ्रष्टाचार के कारण एवं उपचार के लिए एन.एन. बोहरा कमिटी 1993 में भारत सरकार के द्वारा नियुक्त किया गया। एन.एन. बोहरा कमिटी रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि देश के अन्दर अपराधिक गैंग, पुलिस अफसर एवं राजनीतिज्ञ देश के अन्दर भ्रष्टाचार में संलिप्त है। मौजूदा अपराधिक कानूनी प्रावधान भ्रष्टाचार को रोकने में काफी नहीं है क्योंकि अपराधिक कानूनी प्रावधान के अन्तर्गत व्यक्तिगत अपराध को रोकने का सशक्त प्रावधान है लेकिन अपराधियों को विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले अपराधिक चरित्र के पदाधिकारी, पुलिस राजनीतिज्ञ एवं अपराधियों के मिलीभगत से भ्रष्टाचार के व्यापार को आगे बढ़ाया गया है। इसमें सिंडिकेट माफियागिरोह एवं असामाजिक तत्वों की साठ-गांठ मुख्य भूमिका रहती है। जिनका गठजोड़ सरकारी महकमे से सीधे तौर पर बना रहता है और कुछ राजनीतिज्ञ इन भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा वर्तमान में एक वैश्विक मुद्दा बन गया है। इस सवाल को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव कौफी-अनान ने एक कंवेशन आयोजन करके यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार का प्लेग पूरे दुनिया में बड़े पैमाने पर सामाजिक मूल्यों को तोड़ रहा है तथा इसके कुप्रभाव से पूरे विश्व का सामाजिक एवं आर्थिक संतुलन खतरे में पड़ गया है जिसके परिणामस्वरूप विश्व में आतंकवाद एवं उग्रवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। आतंकवाद एवं उग्रवाद की समस्या पूरे विश्व की समस्या है जो सभी जाति, धर्म, समुदाय के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक संरचना को प्रभावित करती है और जो सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन्न किया है।

यह परिस्थिति विश्व के सभी बड़े-छोटे, गरीब-अमीर राष्ट्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दिया है जो विश्व के विकास में विनाशकारी सिध्द हो रहा है। अविकसित एवं अर्ध्दविकसित राष्ट्रों में यह स्थिति बहुत ही विकराल है जहां पर विकास के विशेष कोश को गलत तरीके से मोड़कर भ्रष्टाचार की ओर ले जाया जाता है तथा राष्ट्र का विकास नहीं हो पाता है जो एक विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उक्त कन्वेंशन के प्रस्तावना जो भारत के द्वारा 31 अक्टूबर 2003 को स्वीकार किया गया है। जिसमें स्पष्ट किया गया कि भारत में भ्रष्टाचार से अस्थिरिता की स्थिति उत्पन्न की जा रही है जो लोकतांत्रिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों, को ह्रास की ओर अग्रसित कर रहा है। जिसके चलते कानून एवं न्यायायिक प्रणाली के सम्मान के प्रतिकूल कार्य किया जा रहा है।
कन्वेंशन में यह भी स्पष्ट हुआ था कि भ्रष्टाचार के चलते विश्व संकट के दौर से गुजर रही है। भ्रष्टाचार विरोधी, मशीनरी भ्रष्टाचार को रोकने में असफल सिध्द हो रही है। इसलिए कन्वेंशन ने भ्रष्टाचार को एक अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा मानते हुए भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के रूप में प्रतिपादित किया गया।

अनुच्छेद 6 (2) भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा यह स्पष्ट करता है कि सभी राष्ट्र जो इस मसौदे को स्वीकार किये हैं उन्हें अपने देश के अन्दर स्थानीय एवं संवैधानिक कानून के दायरे में एक भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू करें। जिसकी प्रयिा न्यायपालिका के प्रक्रिया में निहित हो तथा भ्रष्टाचार निवारण के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसके अन्तर्गत इस विशेष कार्य दक्ष व्यक्तियों, सर्तकता अधिकारियों एवं न्यायायिक पदाधिकारियों के संयुक्त कार्यक्षेत्र को निर्धारित करते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए तथा भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम को सुनियोजित ढंग से अमल में लाने के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं संस्था की व्यवस्था करना आवश्यक है। अनुच्छेद 7(4) एवं 8 (2) संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत सम्पादित करने वाले राष्ट्र को अपने स्थानीय कानून के अनुकूल एवं कानूनी व्यवस्था को मजबूत करते हुए भ्रष्टाचार के विरुध्द सशक्त कानून लागू करने पर बल दिया साथ ही कन्वेंशन में न्यायायिक एवं कानूनी संस्थान में एक मानक स्थापित करने के लिए आचरण कोड लागू करने तथा कानून को प्रभावशाली ढंग से लागू करने पर जोर दिया गया। अनुच्छेद 12 संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत यह स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के संस्थानों के अन्तर्गत भी भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रभावशाली ढंग से लागू हो तथा निजी क्षेत्र के अन्तर्गत निजी संस्थानों की पहचान को बरकरार रखते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए ताकि समाज के निजी या सरकारी क्षेत्र से भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो सके।

उक्त कन्वेंशन के अनुच्छेद 13 एवं 34 के प्रावधान के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक राष्ट्र अपने देश के अन्तर्गत सिविल सोसाइटी, गैरसरकारी संस्थान एवं समुदाय आधारित संगठन को भ्रष्टाचार के विरुध्द लड़ाई में जोड़ने के लिए बल दिया है तथा आम जनता के द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी कानून एवं नियमांकन निर्धारित किया जाना चाहिए।  संयुक्त राष्ट्र संघ के भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन में शिकायतों का अनुसंधान तथा सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के विरुध्द दण्डित किये जाने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार लागू किया जाना चाहिए यदि भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के अधिकारी एवं पदाधिकारी को भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायत की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 136, 226 एवं 32 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के पदाधिकारी के विरुध्द माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान लेते हुए दण्डित करने का प्रावधान उक्त कन्वेंशन में प्रस्तावित किया गया। इसी संदर्भ को लेकर भारत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू किया गया लेकिन इसके बावजूद भी भ्रष्टाचार उन्मूलन में कारगर परिणाम नहीं आने के चलते सिविल सोसायटी एवं गैरसरकारी संस्थानों के संयुक्त पहल से भारत में लोकपाल गठन करने के लिए मांग एवं आंदोलन किया जाने लगा। इसी की व्युतपत्ति जनलोकपाल बिल 2011 है।

जन लोकपाल बिल भारत में नागरिक समाज द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचार निवारण बिल का मसौदा है। यह सशक्त जनलोकपाल के स्थापना का प्रावधान करता है जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जनलोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना किसी से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। भ्रष्टाचार विरोधी भारत (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) नामक गैरसरकारी सामाजिक संगठन का निर्माण करेंगे। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता, प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागू कराने के लिए सुप्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरू किया गया था। 16 अगस्त में हुए जनलोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जनसमर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा।

जनलोकपाल विधेयक के अनुसार केन्द्र में लोकपाल और रायों में लोकायुक्त का गठन हो यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र रहे। किसी भी मुकद्दमे की जांच 3 महीने के अंदर पूरा करने और सुनवाई अगले 6 महीने के अन्दर आवश्यक रूप से पूरी की जाए। भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को एक साल के लिए अंदर जेल भेजे जाने का प्रस्ताव किया गया। भ्रष्टाचार के कारण से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसकी क्षतिपूर्ति दोषी से किया जाये। अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल के दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाने एवं शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति करने का प्रस्ताव दिया गया। लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर संयुक्त रूप से करने तथा राजनीतिज्ञों का कोई हस्तक्षेप नहीं करने पर बल दिया गया। लोकपाललोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए तथा लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त एवं दण्डित करने का प्रस्ताव दिया गया। सीवीसी, गुप्तचर विभाग और सीबीआई के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग का लोकपाल में विलय करने का प्रस्ताव दिया गया है। लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकद्दमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था देने का प्रस्ताव जनलोकपाल विधेयक में दिया गया है।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वही प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जांच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।  सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र क लोग मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेगी वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी मामले की जाँच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास सिफारिश भेज सकता है जहां तक मंत्रिमंडल के सदस्यों का सवाल है इसी पर प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुध्द कार्रवाई की क्षमता होगी सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा, बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी। अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भेजा जा सकता है, लेकिन जन लोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वालों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री समेत नेता अधिकारी एवं न्यायाधीश सभी आएंगें। लोकपाल में तीन सदस्य होगें जो सभी सेवानिवृत न्यायाधीश होंगे लेकिन जनलोकपाल में दस सदस्य होंगे जिसका एक अध्यक्ष होगा चार सदस्यों की कानूनी पृष्ठभूमि होना अनिवार्य है। बाकी सदस्यों का चयन अन्य क्षेत्रों से गुणवत्ता के अधार पर किये जाने का प्रस्ताव है। सरकार के द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधामंत्री दोनों सदनों के नेता एवं विपक्ष के नेता कानून और गृह मंत्री है। वहीं जनलोकपाल बिल में न्याययिक क्षेत्र के लोग, चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए 6 महीने से लेकर एक साल तक का समय निर्धारित किया गया है। जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल के अन्दर जांच एवं अदालती कार्रवाई पूरी हो जानी चाहिए। सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाह और जज के खिलाफ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाह एवं जजों के खिलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है।

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है, वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही घोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है। ऐसी स्थिति में जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निवारण शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है।

मानवाधिकार for women(human right)

क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार       


पूछताछ के दौरान अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के अंतर्गत किसी भी महिला को पूछताछ के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया जाएगा।
उनके बयान उनके घर पर ही परिवार के जिम्मेदार सदस्यों के सामने ही लिए जाएंगे।
रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए। बहुत जरुरी हो तो परिवार के सदस्यों या 5 पड़ोसियों के सामने उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।

गिरफ्तारी के दौरान अधिकार
महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2) के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
यदि रात में महिला अपराधी के भागने का खतरा हो तो सुबह तक उसे उसके घर में ही नजरबंद करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर महिला को मजिस्टे्रट के समक्ष पेश करना होगा।
गिरफ्तारी के समय महिला के किसी रिश्तेदार या मित्र को उसके साथ थाने आने दिया जाएगा।

थाने में महिला अधिकार
गिरफ्तारी के बाद महिला को केवल महिलाओं के लिए बने लॉकअप में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला द्वारा मजिस्टे्रट से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
सी.आर.पी.सी. की धारा-51 के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली जाएगी।

तलाशी के दौरान अधिकार
धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी के दौरान स्त्री के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।

जांच के दौरान अधिकार
सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2) के अंतर्गत यदि महिला की डॉक्टरी जांच करानी पड़े तो वह जांच केवल महिला डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
जांच रिपोर्ट के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला के साथ होना जरुरी है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार
पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करे।
रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले जाए।
रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने के बाद ही महिला उस पर हस्ताक्षर करें।
उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला वरिष्ठस्न् पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर सकती है।
धारा-437 के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं के प्रति नरम रुख अपनाते हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
किसी महिला की विवाह के बाद सात वर्ष के भीतर संदिग्ध अवस्था में मृत्यु होने पर धारा-174(3) के अंतर्गत उसका पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा की जानी अनिवार्य है।
धारा-416 के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्यु दंड से छूट दी गई है।

Thursday, 22 January 2015

धारा 377 (section 377)

धारा 377: कौन तय करेगा


सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर दाखिल पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। यह याचिका केन्द्र सरकार तथा नाज़ फाउण्डेशन ने दायर की थी। न्यायमूर्ति एच एल दत्त और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने पुनर्विचार करने से इन्कार किया है। मामला यह है कि संविधान की धारा 377जो कि समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध की श्रेणी में रखती है,उसे समाप्त करने के लिए लम्बे समय से मांग उठती रही है। संघर्षरत लोगों को उस समय बड़ी राहत मिली थी जब दिल्ली हाईकोर्ट ने केस पर यह फैसला दिया था कि समलैंगिक सम्बन्ध अपराध नहीं हैं। (2 जुलाई 2009)
मालूम हो कि हाईकोर्ट ने प्रस्तुत फैसला सुनाते हुए संविधान निर्माताओं द्वारा - खासकर डा. अम्बेडकर द्वारा की गयी संवैधानिक नैतिकता पर विस्तृत चर्चा की थी। उसने कहा था कि संवैधानिक नैतिकता नागरिकों के बीच समानता का आधार है क्योंकि सार्वजनिक नैतिकता, जो एक तरह से समाज में वर्चस्वशाली लोगों की नैतिकता होती है वह कभी भी जनतंत्रा की गारंटी नहीं कर सकती और विशेषकर अपने नागरिकों -खासकर हाशिये पर पड़े नागरिकों को - समानता और सम्मान सुनिश्चित नहीं कर सकती।
जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले की इस तरह व्याख्या करने से इन्कार किया है और ऐसा हस्तक्षेप करने के लिए विधायिका को कहा है। याद रहे कि धारा- 377अंग्रेजों ने उस वक्त लागू की थी जब उन्हें लगता था कि उनकी सेना और उनकी बेटियों को पूरब के अवगुण लगेंगे। इस धारा को उन्होंने अपने देश में यह कहते हुए समाप्त किया है कि आपस में सहमति रखनेवाले वयस्कों के लिए ऐसे सम्बन्ध कोई अपराधा नहीं कहे जा सकते।
हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए बाबा रामदेव की संस्था से लेकर तमाम धार्मिक संगठनों ने, व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी तथा धारा - 377 को कायम रखने की अपील की थी। 11 दिसम्बर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को निरस्त कर दिया और फिर एक बार समलैंगिक सम्बन्ध अपराधा के दायरे में आ गए। ज्ञात हो कि इस आचरण के लिए उम्र कैद तक की सज़ा हो सकती है। यह कानून पुलिस द्वारा लोगों को प्रताड़ित करने का सबसे आसान हथियार भी बन जाता है।
इस संयोग कहा जा सकता है कि जिन दिनों सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता के अपराधीकरण पर मुहर लगा रही थी, उन्हीं दिनों तीन अन्य देशों में ही समलैंगिकता के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने या सख्त कानून बनने की बात दुनिया भर में सूर्खियां बन रही थीं। रूस जहां सोची में आलिम्पिक खेलों का आयोजन हो रहा है, उन्हीं दिनों उसके समलैंगिकता विरोधी कानून - जो समलैंगिकता के प्रचार पर पाबन्दी लगाता है - के पारित होने का ऐलान हुआ जिसके चलते आलिम्पिक खेलों में पहुंचनेवाले गे अर्थात समलैंगिक एथलीटों की सुरक्षा का प्रश्न भी खड़ा हुआ।  मालूम हो कि रूस में समलैंगिकों पर हमलों की घटनाएं इधार बीच बढ़ी हैं। मामला तभी ठंडा हो सका जब राष्ट्रपति पुतिन ने इस सम्बन्ध में एक बयान दिया। जनवरी 13 को नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने एक बिल पर हस्ताक्षर किए जो समलैंगिक रिश्तों का अपराधीकरण करता है, जो एक ऐसा कानून है जो कई मायनों में धारा - 377 से भी अधिक दमनकारी है। अफ्रीकी देश युगान्डा - जहां पिछले साल समलैंगिक अधिकारों के लिए सयि एक कार्यकर्ता के घर पर हमला करके उसे मार डाला गया था, वहां पर सम्भवतऱ् सबसे दमनकारी समलैंगिकताविरोधी कानून बन रहा है। दिसम्बर 2013 में ही वहां की संसद ने समलैंगिकता के लिए उम्र कैद की सज़ा देनेवाले विधोयक को मंजूरी दी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्विचार याचिका निरस्त करने के बाद मामला न्यायालयों का नहीं बल्कि हमारी संसद और सरकार का बनता है जिसके अधिकार क्षेत्र में कानून में संशोधन तथा जरूरत के हिसाब से नए कानून बनाने का सवाल तथा नागरिक अधिकारों को कानूनी कवच प्रदान करने का मसला आता है। मालूम हो कि केन्द्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर सहमति जतायी थी तथा सुप्रीम कोर्ट ने जब उसे निरस्त किया तब उस पर निराशा जतायी थी तथा साथ ही उसने पुनर्विचार याचिका दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को बनाए रखने की बात कही यानि कि वह भी इस बात से सहमत है कि समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनन अपराध के दायरे से बाहर निकाला जाना चाहिए। वही यह देखने में भी आया है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने इस फैसले का समर्थन किया है अर्थात धारा 377 को बनाए रखने के प्रति अपनी सहमति जतायी है। गनीमत समझी जा सकती है कि बाकी लगभग सभी बड़ी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना ही की है।
इस पूरी बहस में एक बड़ा मसला धर्म और संस्कृति के कथित रक्षकों के रूख का बनेगा जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इस आधार पर स्वागत किया था कि वह देश की पूरब की परम्पराओं,नैतिक मूल्यों और धार्मिक शिक्षाओं के अनुकूल है। उनका यह भी कहना था कि इस निर्णय ने - पश्चिमी संस्कृति के आमण और परिवार प्रणाली और सामाजिक जीवन के तानेबाने में बिखराव की आशंका को भी दूर किया है। उन्हें यह अवश्य पूछा जाना चाहिए कि लोगों के निजी मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार उन्हें किसने दिया? क्या प्राकृतिक है और क्या अप्राकृतिक है इसे लोग खुद तय करें, इसे किसी सार्वजनिक नैतिकता के गढ़े हुए मानदण्डों से क्यों नापा जाना चाहिए ?
समलैंगिकता के मसले पर बीते कुछ वर्षों में समाज में सोच बदल रही है तथा यह इस बात का सबूत है कि धीरे धीरे लोग दूसरों के हकों के प्रति उदार हो रहे हैं। कुछ जडतावादियों को छोड़ दें तो शेष समाज में इसके प्रति एक अनुकूल वातावरण दिखता है। समलैंगिकता को एक विकृति मानने या बीमारी मानने की सोच भी समाप्त हो रही है। इतना ही नहीं चिकित्सा जगत में हो रहे विकासम या मनोविज्ञान जगत के अध्ययन यही प्रमाणित कर रहे हैं कि वह मानवीय यौनिकता के प्रगटीकरण की एक अभिव्यक्ति है। समलैंगिक सम्बन्धों के पक्ष में तर्क ढूंढने के लिए लोग पौराणिक कथाओं तथा प्राचीन संस्कृतियों का उदाहरण पेश करने तथा यह कैसे हमारी संस्कृति में पहले से रहा है यह साबित करने में भी ऊर्जा लगा रहे हैं। यह बात प्रमाणित करने के लिए जिन उदाहरणों को पेश किया जाता है उससे भारत की एकांगी छवि निर्मित होती है, जो यहां के बहुसंख्यकवादियों के लिए बेहद अनुकूल है। दूसरी अहम बात यह है कि चाहे वह प्राचीन हो या न हो और हमारी संस्कृति में हो या न हो , अब यह मांग है ऐसा चाहनेवाले हैं तो उन्हें रोकने का आधार नहीं बन सकता है। लैंगिकता लोगों का निजी मामला है तथा किसी भी युग में यौन सम्बन्ध सिर्फ सन्तानोत्पत्ति के लिए नहीं कायम किए जाते रहे हैं।झ्रभी तय कर सकती है।

शिक्षा का अधिकार( right to education)

क्या है यह अधिनियम?



6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाया गया है।

सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करायेंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंध समितियों (एसएमसी) द्वारा किया जायेगा। निजी स्कूल न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को बिना किसी शुल्क के नामांकित करेंगे।

गुणवत्ता समेत प्रारंभिक शिक्षा के सभी पहलुओं पर निगरानी के लिए प्रारंभिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया जायेगा।



अधिनियम का इतिहास

    दिसंबर 2002- अनुच्छेद 21 ए (भाग 3) के माध्यम से 86वें संशोधन विधेयक में 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया।

    अक्तूबर 2003- उपरोक्त अनुच्छेद में वर्णित कानून, मसलन बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2003 का  पहला मसौदा तैयार कर अक्तूबर 2003 में इसे वेबसाइट पर डाला गया और आमलोगों से इस पर राय और सुझाव आमंत्रित किये गये।

    2004- मसौदे पर प्राप्त सुझावों के मद्देनजर मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2004 का संशोधित प्रारूप तैयार कर http://education.nic.in वेबसाइट पर डाला गया।

    जून 2005- केंद्रीय शिक्षा सलाहकार पर्षद समिति ने शिक्षा के अधिकार विधेयक का प्रारूप तैयार किया और उसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे नैक के पास भेजा, जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी हैं। नैक ने इस विधेयक को प्रधानमंत्री के ध्यानार्थ भेजा।

    14 जुलाई, 2006- वित्त समिति और योजना आयोग ने विधेयक को कोष के अभाव का कारण बताते हुए नामंजूर कर दिया और एक मॉडल विधेयक तैयार कर आवश्यक व्यवस्था करने के लिए राज्यों को भेजा। (76वें संशोधन के बाद राज्यों ने राज्य स्तर पर कोष की कमी की बात कही थी।)

    19 जुलाई 2006- सीएसीएल, एसएएफई, एनएएफआरई और केब ने आईएलपी तथा अन्य संगठनों को योजना बनाने, बैठक करने तथा संसद की कार्यवाही के प्रभाव पर विचार करने व भावी रणनीति तय करने और जिला तथा ग्राम स्तर पर उठाये जानेवाले कदमों पर विचार के लिए आमंत्रित किया।



अक्सर पूछे जानेवाले सवाल

यह विधेयक क्यों महत्वपूर्ण है?
यह विधेयक महत्वपूर्ण है क्योंकि संवैधानिक संशोधन लागू करने की दिशा में, सरकार की सक्रिय भूमिका का यह पहला कदम है और यह विधेयक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि-

इसमें निःशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक तथा माध्यमिक शिक्षा का कानूनी प्रावधान है।
प्रत्येक इलाके में एक स्कूल का प्रावधान है।
इसके अंतर्गत एक स्कूल निगरानी समिति के गठन प्रावधान है, जो समुदाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम स्कूल की कार्यप्रणाली की निगरानी करेगी।
6 से 14 साल के आयुवर्ग के किसी भी बच्चे को नौकरी में नहीं रखने का प्रावधान है।

उपरोक्त प्रावधान एक सामान्य स्कूल प्रणाली के विकास की नींव रखने की दिशा में प्रभावी कदम है। इससे सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकेगी और इस प्रकार सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को अलग-थलग करने में रोक लग सकेगी।

2. 6 से 14 साल के आयु वर्ग को चुनने का क्या उद्देश्य है?
विधेयक में सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से प्रारंभिक से माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा देने पर जोर दिया गया है और इस आयु वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने से उनके भविष्य का आधार तैयार हो सकेगा।

यह कानून क्यों महत्वपूर्ण है और इसका भारत के लिए क्याः अर्थ है?

मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून 2009 का पास होना भारत के बच्चोंस के लिए ऐतिहासिक क्षण है।
यह कानून स‍ुनिश्चित करता है कि हरेक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्राप्ति हो और यह इसे राज्यर, परिवार और समुदाय की सहायता से पूरा करता है।
विश्वन के कुछ ही देशों में मुफ्त और बच्चेह पर केन्द्रित तथा तथा मित्रवत शिक्षा दोनों को सुनिश्चित करने का राष्ट्री य प्रावधान मौजूद है।


'मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा क्या है?

6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अपने पड़ोस के स्कूलों में मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा।

इसके लिए बच्चेक या उनके अभिभावकों से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के लिए कोई भी प्रत्यबक्ष फीस (स्कूल फीस) या अप्रत्यक्ष मूल्य (यूनीफॉर्म, पाठ्य-पुस्तकें, मध्या भोजन, परिवहन) नहीं लिया जाएगा। सरकार बच्चे को निःशुल्कू स्कूलिंग उपलब्ध करवाएगी जब तक कि उसकी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं हो जाती


भारत में शिक्षा के अधिकार विधेयक मंजूर

    भारतीय संविधान में संशोधन के छह साल बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शिक्षा के अधिकार विधेयक को मंजूरी दे दी। प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार मिलने से पहले, इसे संसद की स्वीकृति के लिए भेजा जायेगा।
    आजादी के 61 साल बाद भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार विधेयक को मंजूरी दी है, जिससे 6 से 14 साल आयु वर्ग के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा पाना मौलिक अधिकार बन गया है।
    विधेयक के प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं: प्रवेश के स्तर पर आसपास के बच्चों को निजी स्कूलों में नामांकन में 25 प्रतिशत आरक्षण। स्कूलों द्वारा किये गये खर्च की भरपाई सरकार करेगी। नामांकन के समय कोई डोनेशन या कैपिटेशन शुल्क नहीं लिया जाएगा और छंटनी प्रक्रिया के लिए बच्चे या उसके अभिभावकों का साक्षात्कार नहीं होगा।
    विधेयक में शारीरिक दंड देने, बच्चों के निष्कासन या रोकने और जनगणना, चुनाव ड्यूटी तथा आपदा प्रबंधन के अलावा शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्य में तैनात करने पर रोक लगायी गयी है। गैर मान्यताप्राप्त स्कूल चलाने पर दंड लगाया जा सकता है।
    भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम् ने इसे बच्चों के साथ किया गया महत्वपूर्ण वादा करार देते हुए कहा कि शिक्षा के मौलिक अधिकार बनने से मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना केंद्र और राज्यों का संवैधानिक दायित्व हो गया है।
    उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मानव संसाधन मंत्रालय विधेयक का विवरण चुनाव आयोग से सलाह के बाद जारी करेगा।
    विधेयक की जांच-पड़ताल के लिए नियुक्त मंत्रियों के समूह ने इस महीने के शुरू में किसी फेरबदल के बिना ही विधेयक को मंजूरी दे दी थी, जिसमें आसपास के वंचित वर्गों के बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश के स्तर पर 25 प्रतिशत का आरक्षण देने का प्रावधान है। कुछ लोग इसे सरकार की जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए निजी क्षेत्र को मजबूर करने के दृष्टिकोण से भी देखते हैं।
    शिक्षा का अधिकार विधेयक 86वें संविधान संशोधन को कानूनी रूप से अधिसूचित कर सकता है, जिसमें 6 से 14 साल के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।
    1936 में जब महात्मा गांधी ने एक समान शिक्षा की बात उठायी थी, तब उन्हें भी लागत जैसे मुद्दे, जो आज भी जीवित हैं, का सामना करना पड़ा था। संविधान ने इसे एक अस्पष्ट अवधारणा के रूप में छोड़ दिया था, जिसमें 14 साल तक की उम्र के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की जवाबदेही राज्यों पर छोड़ दी गयी थी।
    2002 में 86वें संविधान संशोधन के जरिये शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया था।
    2004 में सत्तारूढ़ राजग ने विधेयक का प्रारूप तैयार किया लेकिन इसे पेश करने के पहले ही वह चुनाव हार गई। इसके बाद यूपीए का वर्तमान प्रारूप विधेयक खर्च और जिम्मेदारी को लेकर केंद्र तथा राज्यों के बीच अधर में झूलता रहा।
    आलोचक उम्र के प्रावधानों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि 6 साल से कम और 14 साल से अधिक उम्र के बच्चों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा सरकार ने शिक्षकों की कमी, शिक्षकों की क्षमता के निम्न स्तर और नये खुलनेवाले स्कूलों की बात तो दूर, वर्तमान स्कूलों में शिक्षा के आधारभूत ढांचे की कमी की समस्या भी दूर नहीं की है।
    इस विधेयक को राज्यों के वित्तीय अंशदान के मुद्दे को लेकर पहले कानून और वित्त मंत्रालयों के विरोध का सामना करना पड़ा था। कानून मंत्रालय को उम्मीद थी कि 25 प्रतिशत आरक्षण को लेकर समस्या पैदा होंगी, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस पर हर साल 55 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था।
    योजना आयोग ने इस राशि की व्यवस्था करने में असमर्थता जतायी थी। राज्य सरकारों ने कहा था कि वे इस पर होनेवाले खर्च का हिस्सा भी देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए केंद्र को पूरा खर्च स्वयं वहन करने के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा।
    विधेयक के प्रारूप में तीन साल के भीतर हर इलाके में प्रारंभिक स्कूल खोले जाने का लक्ष्य है, हालांकि स्कूल शब्द से सभी आधारभूत संरचनाओं से युक्त स्कूल की छवि ही बनती है।
    इसके लिए न्यूनतम आवश्यकताओं का एक सेट तैयार किया गया, क्योंकि सुदूरवर्ती ग्रामीण और गरीब शहरी क्षेत्र में कागजी काम की सामान्य बाधाएं हैं। राज्य को भी यह जिम्मेदारी दी गयी कि यदि कोई बच्चा आर्थिक कारणों से स्कूल नहीं जा रहा हो, तो वह उसकी समस्या को दूर करें।
    नई दिल्ली के बाराखंबा रोड स्थित मॉडर्न स्कूल की प्राचार्या लता वैद्यनाथन् ने कहा: कानून और विधेयक से बच्चे स्कूल नहीं जा सकते। शुरुआत में समस्याएं होंगी, लेकि साथ ही हरेक को अपनी सामाजिक जिम्मेवारी समझनी होगी, वहीं सबसे महत्वपूर्ण यह है कि क्या इस कार्यक्रम तक सही बच्चों की पहुंच है। उनका कहना है कि शुल्क का अवयव सरकार द्वारा दिया जायेगा, लेकिन दूसरे पर खर्च थोपना उचित नहीं है।
    इसके बावजूद विधेयक तैयार करनेवाले शिक्षाविद् तर्क देते हैं कि सामाजिक जिम्मेदारी का वहन करना विशेषाधिकार माना जाना चाहिए, बोझ नहीं।

Sunday, 18 January 2015

mathematics formula

1. (α+в)²= α²+2αв+в²
2. (α+в)²= (α-в)²+4αв
3. (α-в)²= α²-2αв+в²
4. (α-в)²= (α+в)²-4αв
5. α² + в²= (α+в)² - 2αв.
6. α² + в²= (α-в)² + 2αв.
7. α²-в² =(α + в)(α - в)
8. 2(α² + в²) = (α+ в)² + (α - в)²
9. 4αв = (α + в)² -(α-в)²
10. αв ={(α+в)/2}²-{(α-в)/2}²
11. (α + в + ¢)² = α² + в² + ¢² + 2(αв + в¢ + ¢α)
12. (α + в)³ = α³ + 3α²в + 3αв² + в³
13. (α + в)³ = α³ + в³ + 3αв(α + в)
14. (α-в)³=α³-3α²в+3αв²-в³
15. α³ + в³ = (α + в) (α² -αв + в²)
16. α³ + в³ = (α+ в)³ -3αв(α+ в)
17. α³ -в³ = (α -в) (α² + αв + в²)
18. α³ -в³ = (α-в)³ + 3αв(α-в)
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌻🌻

ѕιη0° =0
ѕιη30° = 1/2
ѕιη45° = 1/√2
ѕιη60° = √3/2
ѕιη90° = 1
¢σѕ ιѕ σρρσѕιтє σƒ ѕιη
тαη0° = 0
тαη30° = 1/√3
тαη45° = 1
тαη60° = √3
тαη90° = ∞
¢σт ιѕ σρρσѕιтє σƒ тαη
ѕє¢0° = 1
ѕє¢30° = 2/√3
ѕє¢45° = √2
ѕє¢60° = 2
ѕє¢90° = ∞
¢σѕє¢ ιѕ σρρσѕιтє σƒ ѕє¢
🎒🎒🎒🎒🎒🎒🎒🎒🎒🎒🎒
 2ѕιηα¢σѕв=ѕιη(α+в)+ѕιη(α-в)
2¢σѕαѕιηв=ѕιη(α+в)-ѕιη(α-в)
2¢σѕα¢σѕв=¢σѕ(α+в)+¢σѕ(α-в)
2ѕιηαѕιηв=¢σѕ(α-в)-¢σѕ(α+в)

🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀🚀
ѕιη(α+в)=ѕιηα ¢σѕв+ ¢σѕα ѕιηв.
» ¢σѕ(α+в)=¢σѕα ¢σѕв - ѕιηα ѕιηв.
» ѕιη(α-в)=ѕιηα¢σѕв-¢σѕαѕιηв.
» ¢σѕ(α-в)=¢σѕα¢σѕв+ѕιηαѕιηв.
» тαη(α+в)= (тαηα + тαηв)/ (1−тαηαтαηв)
» тαη(α−в)= (тαηα − тαηв) / (1+ тαηαтαηв)
» ¢σт(α+в)= (¢σтα¢σтв −1) / (¢σтα + ¢σтв)
» ¢σт(α−в)= (¢σтα¢σтв + 1) / (¢σтв− ¢σтα)
» ѕιη(α+в)=ѕιηα ¢σѕв+ ¢σѕα ѕιηв.
» ¢σѕ(α+в)=¢σѕα ¢σѕв +ѕιηα ѕιηв.
» ѕιη(α-в)=ѕιηα¢σѕв-¢σѕαѕιηв.
» ¢σѕ(α-в)=¢σѕα¢σѕв+ѕιηαѕιηв.
» тαη(α+в)= (тαηα + тαηв)/ (1−тαηαтαηв)
» тαη(α−в)= (тαηα − тαηв) / (1+ тαηαтαηв)
» ¢σт(α+в)= (¢σтα¢σтв −1) / (¢σтα + ¢σтв)
» ¢σт(α−в)= (¢σтα¢σтв + 1) / (¢σтв− ¢σтα)
👽👽👽👽👽👽👽👽👽
α/ѕιηα = в/ѕιηв = ¢/ѕιη¢ = 2я
» α = в ¢σѕ¢ + ¢ ¢σѕв
» в = α ¢σѕ¢ + ¢ ¢σѕα
» ¢ = α ¢σѕв + в ¢σѕα
» ¢σѕα = (в² + ¢²− α²) / 2в¢
» ¢σѕв = (¢² + α²− в²) / 2¢α
» ¢σѕ¢ = (α² + в²− ¢²) / 2¢α
» Δ = αв¢/4я
» ѕιηΘ = 0 тнєη,Θ = ηΠ
» ѕιηΘ = 1 тнєη,Θ = (4η + 1)Π/2
» ѕιηΘ =−1 тнєη,Θ = (4η− 1)Π/2
» ѕιηΘ = ѕιηα тнєη,Θ = ηΠ (−1)^ηα
🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸

1. ѕιη2α = 2ѕιηα¢σѕα
2. ¢σѕ2α = ¢σѕ²α − ѕιη²α
3. ¢σѕ2α = 2¢σѕ²α − 1
4. ¢σѕ2α = 1 − ѕιη²α
5. 2ѕιη²α = 1 − ¢σѕ2α
6. 1 + ѕιη2α = (ѕιηα + ¢σѕα)²
7. 1 − ѕιη2α = (ѕιηα − ¢σѕα)²
8. тαη2α = 2тαηα / (1 − тαη²α)
9. ѕιη2α = 2тαηα / (1 + тαη²α)
10. ¢σѕ2α = (1 − тαη²α) / (1 + тαη²α)
11. 4ѕιη³α = 3ѕιηα − ѕιη3α
12. 4¢σѕ³α = 3¢σѕα + ¢σѕ3α

🌾🍄🌾🍄🌾🍄🌾🍄🌾🍄🌾
» ѕιη²Θ+¢σѕ²Θ=1
» ѕє¢²Θ-тαη²Θ=1
» ¢σѕє¢²Θ-¢σт²Θ=1
» ѕιηΘ=1/¢σѕє¢Θ
» ¢σѕє¢Θ=1/ѕιηΘ
» ¢σѕΘ=1/ѕє¢Θ
» ѕє¢Θ=1/¢σѕΘ
» тαηΘ=1/¢σтΘ
» ¢σтΘ=1/тαηΘ
» тαηΘ=ѕιηΘ/¢σѕΘ

⚡⚡⚡⚡🌀🌀🌀🌀🍃🌿🍁🍂