Saturday, 14 March 2015

USE OF HINDI LANGUAGE IN SUPREME COURT

हिंदी भाषा का उच्चतम न्यायालय में प्रयोग!


नई दिल्ली। 
संविधान के रक्षक उच्चतम न्यायालय का राष्ट्र भाषा हिंदी में कार्य करना
 अपने आप में गौरव और हिंदी को प्रोत्साहन का विषय है। 
राजभाषा पर संसदीय समिति ने 28 नवंबर 1958 को संस्तुति की थी
 कि उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए।
 इस संस्तुति को पर्याप्त समय व्यतीत हो गया है,
 किंतु इस दिशा में आगे कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है।
 जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश
 में अंग्रेजी भाषी लोग मात्र 0.021% ही हैं।
 इस दृष्टिकोण से भी अत्यंत अल्पमत की,
 और विदेशी भाषा जनता पर थोपना
 जनतंत्र का स्पष्ट निरादर है।
 देश की राजनैतिक स्वतंत्रता के
 65 वर्ष बाद भी देश के सर्वोच्च न्यायालय
 की कार्यवाहियां अनिवार्य
 रूप से ऐसी भाषा में संपन्न की जा रही हैं,
 जो 1% से भी
 कम लोगों में बोली जाती है।
 इस कारण देश के
 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से अधिकांश जनता 
में अनभिज्ञता व गोपनीयता, और पारदर्शिता का अभाव रहता है।
 अब संसद में समस्त कानून हिंदी भाषा में बनाये जा रहे हैं
 और पुराने कानूनों का भी हिंदी अनुवाद किया जा रहा है
 अतः उच्चतम न्यायालय को हिंदी भाषा में कार्य करने में
 कोई कठिनाई नहीं है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण
 आयोग, विधि आयोग आदि भारत सरकार के मंत्रालयों,
 विभागों के नियंत्रण में कार्यरत कार्यालय हैं और वे राजभाषा
 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में हिंदी भाषा में कार्य 
करने को बाध्य हैं तथा उनमें उच्चतम न्यायालय के सेवा
 निवृत न्यायाधीश कार्यरत हैं। यदि एक न्यायाधीश 
सेवानिवृति के पश्चात हिंदी भाषा में कार्य करने वाले 
संगठन में कार्य करना स्वीकार करता है, तो उसे 
अपने पूर्व पद पर भी हिंदी भाषा में कार्य करने में
 स्वाभाविक रूप से कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
 दिल्ली उच्च न्यायालय में 11 अनुवादक पदस्थापित हैं,
 जो आवश्यकतानुसार अनुवाद कार्य कर न्यायाधीशों के 
न्यायिक कार्यों में सहायता करते हैं। उच्चतम न्यायालय
 में भी हिंदी भाषा के प्रयोग को सुकर बनाने के लिए 
न्यायाधीशों को अनुवादक सेवाएं उपलब्ध करवाई जा सकती हैं।

आज केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत ट्राइब्यूनल तो
 हिंदी भाषा में निर्णय देने के लिए कर्तव्यरूप से बाध्य हैं।
 अन्य समस्त भारतीय सेवाओं के अधिकारी हिंदी भाषी
 राज्यों में सेवारत होते हुए हिंदी भाषा में कार्य कर ही रहे हैं।
 राजस्थान उच्च न्यायालय की तो प्राधिकृत भाषा हिंदी ही है
 और हिंदी से भिन्न भाषा में कार्यवाही केवल उन्ही
 न्यायाधीश के लिए अनुमत है, जो हिंदी भाषा नहीं 
जानते हों। क्रमशः बिहार और उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालयों में
 भी हिंदी भाषा में कार्य होता है। न्यायालय जनता की सेवा के
 लिए बनाये जाते हैं और उन्हें जनता की अपेक्षाओं पर खरा
 उतरना चाहिए। हिंदी भाषा को उच्चतम न्यायालय में कठोर 
रूप से लागू करने की आवश्यकता ही नहीं है, अपितु वैकल्पिक
 रूप से इसकी अनुमति दी जा सकती है और कालांतर में हिंदी
 भाषा का समानांतर प्रयोग किया जा सकता है। आखिर हमें
 स्वदेशी भाषा हिंदी लागू करने के लिए कोई लक्ष्मण रेखा खेंचनी
 होगी-शुभ शुरुआत जो करनी है।
अब देश में हिंदी भाषा में कार्य करने में सक्षम
 न्यायविदों और साहित्य की भी कोई कमी नहीं है।
 न्यायाधीश बनने के इच्छुक, जिस प्रकार कानून सीखते हैं,
 ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी सीख सकते हैं,
 चूंकि किसी न्यायाधीश को हिंदी नहीं आती,
 अत: न्यायालय की भाषा हिंदी नहीं रखी जाए,
 तर्कसंगत व औचित्यपूर्ण 
नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि न्यायालय 
न्यायाधीशों और वकीलों की सुविधा के लिए बनाये जाते हैं।
 देश के विभिन्न न्यायालयों से ही उच्चतम न्यायालय
 और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश आते हैं।
 देश के कुल 18008 अधीनस्थ न्यायालयों में
 से 7165 न्यायालयों की भाषा हिंदी हैं और शेष
 न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी अथवा स्थानीय भाषा है
। इन अधीनस्थ न्यायालयों में भी कई न्यायालयों
 की कार्य की भाषा अंग्रेजी है, जबकि अभियोजन
 की प्रस्तुति हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में की जा रही है।
 पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल,
 महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, तमिलनाडु आदि इसके उदाहरण हैं।
 इस प्रकार कई राज्यों में अधीनस्थ न्यायालयों,
 उच्च न्यायालय में अभियोजन की भाषाएं भिन्न-भिन्न हैं
, किंतु उच्च न्यायालय अपनी भाषा में सहज रूप से कार्य कर रहे हैं।

संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुति संख्या 44
 को स्वीकार करने वाले राष्ट्रपति के आदेश को प्रसारित 
करते हुए राजभाषा विभाग के (राजपत्र में प्रकाशित)
 पत्रांक I/20012/07/2005-रा.भा.(नीति-1) दिनांक 02.07.2008
 में कहा गया है-“जब भी कोई मंत्रालय विभाग
 या उसका कोई कार्यालय या उपक्रम अपनी वेबसाइट
 तैयार करे तो उसे अनिवार्य रूप से द्विभाषी तैयार किया जाए
। जिस कार्यालय की वेबसाइट केवल अंग्रेजी में है
, उसे द्विभाषी बनाए जाने की कार्यवाही की जाए।
”  फिर भी राजभाषा को लागू करने में कोई कठिनाई
 आती है तो केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो अथवा
 आउटसोर्सिंग से इस प्रसंग में सहायता भी ली जा सकती है।

संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट खंड-5 में
 की गयी संस्तुतियों को राष्ट्रपति की पर्याप्त 
समय से पहले, राज-पत्र में
 प्रकाशित पत्रांक I/20012/4/92-रा.भा.(नीति-1) दिनांक
 24.11.1998 से ही स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।
 संस्तुति संख्या (12)-उच्चतम न्यायलय के महा-रजिस्ट्रार के
 कार्यालय को अपने प्रशासनिक कार्यों में
 संघ सरकार की राजभाषा नीति का अनुपालन 
करना चाहिए। वहां हिंदी में कार्य करने के लिए
 आधारभूत संरचना स्थापित की जानी चाहिए और
 इस प्रयोजन के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों
 को प्रोत्साहन दिए जाने चाहिएं। संस्तुति संख्या
 (13)-उच्चतम न्यायालय में अंग्रेजी के
 साथ–साथ हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत होना चाहिए
। प्रत्येक निर्णय दोनों भाषाओं में उपलब्ध हों।
 उच्चतम न्यायालय द्वारा हिंदी और अंग्रेजी
 में निर्णय दिया जा सकता है, अत: अब कानूनी रूप
 से भी उच्चतम न्यायालय में हिंदी भाषा के प्रयोग
 में कोई बाधा शेष नहीं रह गयी है।

संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान है कि
 जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे
 तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च
 न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी
। उच्च न्यायालयों में हिंदी भाषा के प्रयोग का प्रावधान
 दिनांक 07-03-1970 से किया जा चुका है और
 वे राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत
 अपनी कार्यवाहियां हिंदी भाषा में स्वेच्छापूर्वक
 कर रहे हैं। ठीक इसी के समानांतर राजभाषा 
अधिनियम में निम्नानुसार धारा 7क अन्तः
स्थापित कर संविधान के रक्षक उच्चतम न्यायालय
 में भी हिंदी भाषा के वैकल्पिक उपयोग का मार्ग
 प्रक्रियात्मक रूप से खोला जा सकता है।

धारा 7 क. उच्चतम न्यायालय के निर्णयों आदि में हिंदी

 का वैकल्पिक प्रयोग-“नियत दिन से ही या तत्पश्चात्‌
 किसी भी दिन से राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी
 भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का प्रयोग, उच्चतम
 न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय,
 डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर
 सकेगा और जहां कोई निर्णय, डिक्री या आदेश हिंदी
 भाषा में पारित किया या दिया जाता है, वहां उसके
 साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के प्राधिकार से निकाला
 गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।” इस हेतु 
संविधान में किसी संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है।
 हिंदी के वैकल्पिक उपयोग के प्रावधान से न्यायालय की
 कार्यवाहियों में कोई व्यवधान या हस्तक्षेप नहीं होगा, 
अपितु राष्ट्र भाषा के प्रसार के एक नए अध्याय का शुभारंभ हो सकेगा।

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